लोककथा : अडहा बइद परान घात




एकठन गांव म एकझिन लइका रहय। वोहा एक दिन दूसर गांव घूमे बर गीस। रद्दा म वोहा देखिस के ऊंट ह बगुला खात रहय अउ बगुला ह वोकर नरी म फंसगे। ऊंट ल सांस ले म तकलीफ होय लगिस। वोहा भुईंया म घोलंड के छटपटाय लागिस। अतका देखके ऊंट के मालिक ह एकझन बइद ल बला के लानिस। बइद ह जोर-जोर से कहिस- बागुल बारी जाय, थुला जाय कहिके ऊंट के नरी ल जोर- जोर से मारिस।
बगुला ह फुट गे अउ ऊंट ह खडा होगे। वो लइका ह सब ल देख के सोचिस- कोनो ल बने करे के येहा बने तरीका हे। आज ले महू ह अइसने बइद बन जथों। एक दिन एकठन गांव कोती जात रहय, तब देखथे के एकझन लइका के नरी म फोटका निकल आय रहय। वोला वोकर दाई-ददा कर लेगिस अउ कहिस- मेहा बहुचेत बडे बइद आंव, तोर लइका ल तुरते बने कर देहों। लइका के दाई- ददा मन मान गे। तहां ले वोहा नइका के नरी ल बागुल बारी जाय, थुला जाय कहिके जोर-जोर से मारे लगिस। लइका ह वोकर मरई म मरगे। वोला देखके गांव भर के मन वोला खूब पीटिन अउ जेल म डरवा दीन। येला कहिथे- अडहा बइद परना घात।

ध्रुवसिंह ठाकुर
तिलक नगर बिलासपुर



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